पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैंने
काले घर में सूरज रख के
तुम ने शायद सोचा था
मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे
मैंने एक चिराग जला कर अपना रास्ता खोल लिया
तुम ने एक समंदर हाथ में ले कर मुझ पर ढेल दिया
मैंने नूह की कश्ती उस के ऊपर रख दी
काल चला तुम ने और मेरी जानिब देखा
मैंने काल को तोड़ कर लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी खुदी को तुम ने चंद चमत्कारों से मारना चाहा
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया
मौत की शह दे कर तुम ने समझा था अब तो मात हुई
मैंने जिस्म का खोल उतार कर सौंप दिया
और रूह बचा ली
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी
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